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________________ २=४ ] [ जवाहर - किरणावली ही सीखे जाते हैं, तदनुसार भगवान् ने सब काम असली तौर पर उस समय की प्रजा को सिखलाए | भगवान् ने आरंभ-समारंभ करना क्यों सिखलाया ? इस सम्बन्ध में यही कहा जा सकता है कि जीवन सर्वथा निरारम्भ न हुआ है, न है और न होगा। आरंभ के अभाव में जीवन टिक ही नहीं सकता। ऐसी स्थिति में आरंभ की तरतमता का विचार करना पड़ता है और जो कार्य कम आरंभ का हो उसे अपनाना पड़ता है । आत्मघात करने वाला धर्मात्मा नहीं हो सकता । अतएव जीवन निभाने के लिए किये जाने वाले अनिवार्य आरंभ का विरोध करना बुद्धिमत्ता नहीं है । भगवान् ऋषभदेव पर यह आरोप लगाना कि उन्होंने पाप करना सिखलाया है, निरी मूर्खता है । कल्पवृक्षों से जीवनपयोगी वस्तुएँ मिलना बंद हो गया था, ऐसी दशा में भगवान् लोगों को अगर आर्यकलाओं के द्वारा जीवन धारण करने की शिक्षा न देते तो लोग अनार्य कलाओं की श्रीर झुकते, उनमें प्रवृत्त होते और फिर उनके जीवन का पतन कहाँ जाकर रुकता ? उस समय की जरा कल्पना कीजिए कि कल्पवृक्षों ने देना बन्द कर दिया और प्रजा को कलाओं का ज्ञान नहीं था ! उस समय की प्रजा पर यह कितना घोर संकट था ! उन पर जो बीती होगी उसे कौन अनुभव कर सकता है ! उस समय भी अगर भगवान् कलाएँ न सिखलाते तो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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