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[ जवाहर - किरणावली
बनाने के लिए हुआ था । यह बात प्राचीन है और समझ की कमी के कारण उसे समझना कठिन हो रहा है। स्तुति में कहते हैं
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श्री आदीश्वर स्वामी हो,
प्रणम् सिर नामी तुम भणी । श्रादि धरमप्रभु श्रन्तर्यामी श्राप कीधी हो, भरत खेतर सर्पिणि काल में || निवार,
कोई जुगल्याधर्म
पेला नम्वर मुनिवर हो ||
तीर्थंकर जिन हुआ केवली,
प्रभु थाप्या तीरथ चार || श्री० ॥
कुछ लोग कहेंगे कि भगवान् ने 'जुगल्याधर्म' मिटाकर कौन-सा अच्छा काम किया ? मज़े में विना हाथ पैर हिलाये सीधा खाना-पीना मिलता था । फिर कर्मभूमि चलाने से क्या लाभ हुआ ? कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि भगवान् ऋषभ-देव ने आरंभ-समारंभ करना ही सिखलाया है ! घर बनाना, खेती करना, वर्त्तन और कपड़े बनना आदि काम बतलाकर निरारंभी जीवन में बाधा डाल दी है ।
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वास्तव में संकीर्ण विचार वाले लोग धर्म के तत्व का नहीं समझ सकते। पहले कहा जा चुका है कि नैतिक जीवन के अभाव में धार्मिक या आध्यात्मिक जीवन नहीं बन सकता । मगर लोग नैतिक जीवन के महत्त्व को नहीं सम
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