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________________ बीकानेर के व्याख्यान ]. [ २६६ न हो, उसका राग अच्छा कैसे हो सकता है ? उसके राग में कल्याण का मधुर रस और निर्मलता की मिठास किस प्रकार संभव हो सकती है ? मैं कहता हूँ- उसके राग में हजारों विषयविकार के विषैले कीड़े भरे हैं ! राग तो कोयल का है जो अपने गाने के बदले कुछ भी नहीं चाहती ! न मानप्रतिष्ठा चाहती है, म धन-दौलत चाहती है, न किसी को रिझाना चाहती है, न लूटना चाहती है, न किसी के द्वारा निन्दा करने पर दुःख मानती है । मतलब यह है कि आत्मा को निस्पृह, निष्काम, निरीह बनाये विना सच्ची भक्ति नहीं होती । साधु का वेष धारण कर लेना सरल है, लेकिन हृदय के विकारों पर विजय प्राप्त कर लेना सरल नहीं है । भक्त कहता है माधव ! मोह पाश किम टूटे, बाहर कोटि उपाय करत हौं । अभ्यन्तर गांठ न छूटे || माधव० || इस भजन को सुनकर आप शायद सोचते होंगे कि मैं ऋषभदेव की स्तुति करना छोड़कर अन्यत्र चला गया । मगर ऐसी बात नहीं है । मैं भगवान् ऋषभ की ही स्तुति कर रहा हूँ । संस्कृत भाषा में 'मा' शब्द का अर्थ लक्ष्मी होता है और 'धव' पति को कहते हैं । इस प्रकार माधव का अर्थ - लक्ष्मीपति | आप कह सकते हैं कि हम लक्ष्मीपति को मानते ही कब हैं ? लेकिन आप यह देखें कि इस प्रार्थना में क्या बात Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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