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[ जवाहर - किरणावली
कारण ही गाती है। उसके गाने का और कोई अभिप्राय नहीं है ।
आचार्य कहते हैं कि यह स्तुति किसी की प्रेरणा से नहीं की जा रही है और न किसी की खुशामद के लिए ही की जा रही है । प्रभु-भक्ति की प्रेरणा मेरे अन्तःकरण को स्तुति करने के लिए विवश कर रही है।
मित्रो ! एक भक्ति करने वाले महात्मा ने भगवान् की स्तुति का जो प्रयोजन प्रकट किया है, वह सभी के लिए मार्गदर्शक होना चाहिए । उन्होंने बतला दिया है कि भक्ति, चाहे उसे सेवा कहो, आराधना कहो, उपासना कहो, कैसी होनी चाहिए ?
भक्तामर स्तोत्र की स्तुति भक्तिमार्ग को दिखलाने का साधन है । जैसे रत्न की परीक्षा जौहरी ही कर सकता है, उसी प्रकार इस स्तुति का तत्त्व ठण्डे दिमाग से विचार करने वाले को ही मालूप हो सकता है । इसके तत्त्व का वर्णन करना मेरे लिए शक्य नहीं है। फिर भी यथाशक्ति अपने भावों को प्रकट करता हूँ ।
आचार्य भी भक्ति कर रहे हैं और आप लोग भी भक्ति करने के लिए उत्सुक हैं, मगर भक्ति करने से पहले यह समझ लेना आवश्यक है कि भक्ति किस प्रकार होती है ?
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किसी का यह विचार हो कि विद्वान् लोग ही भक्ति कर सकते
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