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बीकानेर के व्याख्यान]
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निन्दा प्रशंसा की परवाह नहीं करती। उसके राग आलापने का और कोई हेतु नहीं है। आम्रवृक्ष के फूलने पर उसके हृदय में अनुराग उत्पन्न होता है और अनुराग में मस्त होकर वह गाने लगती है। अनुराग की वह मस्ती रोके नहीं रुकती।
कोयल जब गाती है तो कौवे उसे मारने दौड़ते हैं ? विचारने की बात यह है कि कोयल ने कौवों का क्या विगाड़ा है जो वे उसे मारने दौड़ते हैं ? संभव है, अपने राग की कर्कशता के विचार से उन्हें कोयल के प्रति ईर्षा होती हो। लेकिन उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि कहाँ तो गंदगी खाने वाले वे और कहाँ आम की मंजरियों का रस चूसने वाली कोयल ! ऐसी अवस्था में अगर कौवा और कोयल के स्वर में अन्तर हो तो आश्चर्य ही क्या है ? __ कौवे जब कोयल को सताने लगते हैं, तब भी कोयल 'कुहू कुहूं' करती हुई आम की एक शाखा से दूसरी शाखा पर जा बैठती है और वहाँ फिर अपना राग आलापने लगती है। मतलब यह है कि जब वह गाना चाहती है तो किसी के मारने से भी नहीं रुकती और जब नहीं गाना चाहती तो किसी के मारने पर भी नहीं गाती । वह आम की मंजरियों की सुगन्ध से प्रेरित होकर गाती है और उसी समय गाती है जब आम में मंजरियां होती हैं। इससे स्पष्ट ज्ञात होता है कि कोयल आम की मंजरियों के प्रेम के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com