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________________ .. ... - -- ------ बीकानेर के व्याख्यान ] [२५६ - - - - - - - - चीज़ नहीं समझेगा। उसकी बुद्धि झूठ-कपट आदि बुरे कामों की ओर कभी नहीं जाएगी । भक्त हृदय भलीभांति समझता है कि यह सब कुत्सित काम भक्ति का विनाश करने वाले हैं । जो ऐसी भक्ति तक पहुँच जाता है, उसका कल्याण ही कल्याण होता है। . पात्र के भेद से भक्ति अनेक प्रकार की है। मगर इतना विवेचन करने का समय नहीं है। साहित्यशास्त्र में अनेक रसों में से भक्तिरस भी अलग माना गया है। भक्तिरस में अपूर्व मिठास है। भक्तिरस की मधुरता हृदय में अद्भुत अाह्लाद उत्पन्न करती है। जिसके अन्तःकरण में भगवद्भक्ति का अखण्ड स्रोत वहता है वह पुरुष बड़ा भाग्यशाली है। उसके लिए तीन लोक की संपदा-निखिल विश्व का राज्य भी तुच्छ है। प्रहलाद ने, ध्रुव ने और कामदेव ने भक्तिरस के महत्त्व को समझा था और इसीलिए उन्होंने बड़े से बड़े संकट को भी तुच्छ माना था । दूसरे रस 'क्षणिक आनन्द देने वाले हैं मगर भक्तिरस शाश्वत सुख उत्पन्न करता है। जैसे मामूली वस्तु भी नदी के प्रवाह में बहती हुई समुद्र में मिल जाती है, उसी प्रकार भक्ति के प्रवाह में बहने वाला मनुष्य ईश्वर में मिल जाता है अर्थात् स्वयं परमात्मा बन जाता है। भक्ति वह अलौकिक रसायन है जिसके द्वारा नर नारायण हो जाता है भक्ति से हृदय में अपूर्व शांति और असाधारण सुख प्राप्त होता है । भक्ति का मार्ग सरल और सुगम है । सभी मुमुच इसका अवलम्बन ले सकते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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