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________________ २५८ ] [ जवाहर - किरणावली भलेमानुस का खाना नहीं हो सकता । अगर मैं अपना पेट भरने के लिए इस बच्चे की जान ले लूँगा तो इसकी इस स्नेहमयी माता को कितनी व्यथा होगी ! अब चाहे मैं भूख का मारा मर जाऊँ, मगर इस अपनी माता के दुलारे को नहीं खाऊँगा । आखिर उसने बच्चे को छोड़ दिया । बच्चा अपनी माता से और माता अपने बच्चे से मिलकर उछलने लगे । यह स्वर्गीय दृश्य देखकर सुबुक्तगीन की प्रसन्नता का पार न रहा । इस प्रसन्नता में वह खाना-पीना भूल गया । श्राज ही उसकी समझ में आया कि प्राणी पर दया करने से कितना श्रानन्द होता है । जंगली पशुओं के डर से सुबुक्तगीन रात के समय पेड़ पर चढ़ कर सोया करता था । उस दिन भी वह पेड़ पर ही सोया था । स्वप्न में उसके पैगम्बर ने उससे कहा- 'तूने बच्चे पर दया करके बहुत अच्छा काम किया है। तू अफगानस्तान का बादशाह होगा ।' उसके पैगम्बर की भविष्यवाणी सच्ची हुई । कुछ दिनों बाद वह सचमुच ही अफगानस्तान का बादशाह बन गया । · अब आप विचार कीजिए कि बच्वे से उत्कट प्रेम होने के कारण हिरनी ने प्राण की परवाह नहीं की तो परमात्मा से प्रेम होने पर मनुष्य को कैसा होना चाहिए ? जिसके हृदय में परमात्मा के प्रति सच्ची भक्ति होगी वह धन-दौलत को बड़ी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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