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________________ २५४1 [ जवाहर-किरणावली आप भी कहते हैं तू सो प्रभु प्रभु सो तू है। द्वत-कल्पना मेंटो ॥ जहाँ यह भेद मिटा और पुद्गल का भाव गया, वहाँ चिदानन्द और परमात्मा में कोई अन्तर नहीं रह जाता । फिर जहाँ देखो, परमात्मा ही परमात्मा है। कभी ऐसा प्रसंग उपस्थित हो जाय कि आपको मक्खन और चाल में से एक चीज़ को छोड़ना आवश्यक हो जाय और आप यह जानते हैं कि मक्खन सारभूत पदार्थ है, छाछ निस्सार है तो आप किसे लेना पसंद करेंगे और किसे छोड़ना चाहेंगे? 'छाछ छोड़ना चाहेंगे !' लेकिन समय आने पर आप छाछ के लालच में पड़कर मक्खन को छोड़ देते हैं । अर्थात् पुद्गल के लोभ में फंसकर आत्मा की उपेक्षा कर देते हैं। इसका अर्थ यह है कि आप भक्ति की बात कहते-सुनते तो हैं मगर अभी उससे दूर हैं । जिस समय आप भक्ति के निकट पहुँच जाएँगे, उस दिन ऐसी. भूल कदापि नहीं करेंगे। ___ मीरां कहती है-'मैंने अनित्य में से नित्य को अलग कर लिया है। अब यह अनित्य रहे या न रहे, मुझे इसकी परवाह नहीं है।' __ मित्रो! आपको भी एक ज़हर पीने का अभ्यास करना चाहिए । मैं उस ज़हर को पीने के लिए नहीं कहता, जो मीरां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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