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बीकानेर के व्याख्यान]
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अनित्य हैं, केवल आत्मा नित्य है । इस संसार रूपी छाछ में से मैंने अविनाशी रूपी मक्खन निकाल लिया है। अब मुझे इस छाछ की चिन्ता नहीं रही । अनित्य में से नित्य को पाकर मैं निश्चिन्त हो गई।
राणा ने मीरां के पास विष का प्याला भेजा। कहला भेजा-तुम साधुओं और भिखारियों के पास बैठ-बैठ कर मुझे लजित करती हो। तुम्हारी भक्ति मुझे पसंद नहीं है। इसलिए संसार में रहना है तो राजकुल की मर्यादा के अनुसार नियम पूर्वक राजघराने में रहो अन्यथा विष का यह प्याला पीकर संसार से विदा लो। राणा ने स्पष्ट कहला दिया था कि यह विष का प्याला है। फिर भी मीरा ने कहा-मेरे लिए यह विष नहीं, अमृत है। पहले तो इसे मेरे उन प्राणनाथ ने भेजा है, जिन्हें भक्ति में होती हुई भी मैं नहीं भूली हूँ। इसके अतिरिक्त उनसे भी बड़े पति-परमात्मा की भक्ति के लिए यह ज़हर पीना पड़ रहा है। अगर चोरी या अन्याय के अपराध के दंड में जहर पीना पड़ता तो दुःख की बात थी; मगर भक्ति के लिए और वह भी परमात्मा की भक्ति के पुरस्कार में विष का पान करना क्या बुरा है ? कहा है
जिसका पर्दा दुई का दूर हुना। फिर उसमें खुदा में फरक ही नहीं ॥ न तो श्रावे हवा न प्रातिश वा।
कोई मेरे सिवा तो वशर ही नहीं ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com