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________________ २४८] [ जवाहर-किरणावली प्रेम की प्रबलता हिरण-हिरणी को अपनी असमर्थता का विचार करके चुपचाप नहीं बैठने देती। वे अपनी शक्ति का विचार न करके सिंह का समाना करते हैं और अपने बच्चे की. रता करने का प्रयत्न करते हैं । __ आचार्य कहते हैं-पशु भी संतानप्रेम में मतवाला होकर अपने बल अबल का ध्यान भूल जाता है, तो परमात्मा की भक्ति का लोकोत्तर प्रेम मुझे बल-अबल का ध्यान कैसे रहने देगा ? अतएव परमात्मा के गुण-समुद्र को पार करने की शक्ति न होने पर भी मैं उसकी स्तुति करने को उसी प्रकार ललचाया हूँ, जिस प्रकार मृग अपने बालक की सिंह से रक्षा करने के लिए ललचाता है। वास्तव में में स्तुति करने में असमर्थ हूँ किन्तु केवल भक्ति से विवश होकर प्रवृत्त हुआ हूँ। ___ आचार्य का यह कथन मर्म से भरा हुआ है । इसके मर्म को समझने का हमें प्रयत्न करना चाहिए। आचार्य विद्वान् थे। वे स्तुति-कार्य को करने की बहुत कुछ शक्ति रखते थे। फिर भी अपने आपको अशक्त वताकर उन्होंने कहा कि मैं गुणगान के कार्य में प्रवृत्त होता हूँ। प्राचार्य का यह कथन उनके लिये है या हमारे और आपके लिए ? उनके इस कथन से स्पष्ट है कि जिसमें भक्ति है उसमें शक्ति आये विना नहीं रहेगी। जिसमें वास्तविक भक्ति होगी वह कार्य में लगेगा ही। जो कार्य में नहीं लगता, समझना चाहिए कि उसमें भक्ति ही नहीं है । मृगी अगर अपने वश्च को बचाने के लिए सिंह का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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