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बीकानेर के व्याख्यान]
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सिरफुटौवल की नौबत आ पहुंची है, और इधर ये मस्त होकर खेल रही हैं। उसने झगड़ने वालों के पास जाकर कहा-अरे झगड़ना बन्द करके एक तमाशा देख लो ! पड़ोसी हो, चाहोगे तभी झगड़ लोगे, मगर वह तमाशा चाहे तब नहीं देख पाओगे । आओ, मेरे साथ चलो।
तमाशे की बात प्यारी लगती ही है। फिर वुढ़िया के कहने का ढंग भी कुछ आकर्षक था। अतः झगड़ने वाले बुढ़िया के पीछे हो लिये और वहाँ पहुँचे जहाँ दोनों बालिकाएँ अपनी-अपनी नाव तिरा रही थीं। दोनों घर वालों को दिखाते हुए बुढ़िया ने कहा-यह तमाशा देखो,पानी में लकड़ियों के टुकड़े तैर रहे हैं। दरअसल यह नाव हैं ! ____एक झगड़ने वाले ने कहा-यह कौन-सा तमाशा हुआ ! तैराई होगी, किसी ने ! वृद्धा-और किसी ने नहीं, यशोदा और देवकी ने तैराई हैं। इतना कहकर उसने उन लड़कियों से पूछा इनमें कौन किसी की नाव है बेटियो ! जरा बताओ तो सही।
दोनों ने साथ-साथ उत्तर दिया-यह मेरी है, यह मेरी है!
तब मुस्किराती हुई वृद्धा ने कहा-देखो, दोनों लकड़ियां इकट्ठी हो गई हैं और जिनको लेकर तुम लड़ रहे हो वह लड़कियाँ भी मिल गई हैं। अब तुम कब मिलोगे? यह तो नादान बालक होकर भी मिल गई और तुम समझदार हो कर भी झगड़ते रहोगे? वृद्धा की समयोचित शिक्षा से दोनों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com