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________________ . . - - - - - - - . .-----.- .. - -- - - -. --. -.-.. -.. बीकानेर के व्याख्यान [२२६ ------ --- करने से क्या लाभ है? पहले ही नफा न लेकर वस्तु दी जाए तो कितना सुन्दर आदर्श हो ! नीतिकार भी कहते हैं प्रदालनाद्धि पंकस्य दूरादस्पर्शनं घरम् । अर्थात्-पहले कीचड़ लगाकर फिर धोने की अपेक्षा तो कीचड़ से दूर रहमा ही भला है। आज मुनाफ़ा न लेने वाली या मर्यादित मुनाफ़ा लेने वाली दुकान कहीं हो तो उससे जनता को बड़ी जबर्दस्त । शिक्षा मिल सकती है। कहा जा सकता है कि आज इस प्रकार का व्यापार करने से दिवाला निकल जाने में क्या देर लगेगी ? आज इतनी तेजी-मंदी चलती है कि न पूछिए बात। यह ठीक है, मगर आज का व्यापार, व्यापार नहीं, कानून द्वारा सम्मत लूट है। अमेरिका की किसी राजनैतिक घटना का प्रभाव भारत के व्यापार पर पड़े और वह भी अचानक बिजली की तरह पड़े, भला यह भी कोई व्यापार है? इसके अतिरिक्त अाज सट्टे के व्यापार की ही सर्वत्र प्रधानता देखी जाती है। सट्टा देश का दिवाला निकालने का साधन है। प्रतापगढ़ में पन्नालालजी मोगरा नामक एक सजन थे। वह श्री राजमल जी महाराज के बड़े भक्त थे। एक दिन उन्होंने मुनिजी से कहा-महाराज, अाजकल व्यापार नहीं चलता, इसलिए धर्मकार्य करने में भी मन नहीं लगता। मुनिजी ने उत्तर दिया-तुम श्रावक होकर दुःख मानते हो, यह आश्चर्य की बात है। लोभ में पड़कर दुगने-डयोढ़े करना चाहते हो, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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