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________________ २१४ ] [ जवाहर - किरणावली 'चरण' कहते हैं । भगवान् का चारित्र, आचरण, संयम और सदाचार इतना वीतर। गतापूर्ण है कि उनके चरणों में झुकते ही संसार के जीवों को अपूर्व शान्ति प्राप्त होती है और उनके भीतर छाया हुआ मोह का अंधकार तत्काल नष्ट हो जाता है । यह भगवान् के चरणों की विशेषता है । इसके अतिरिक्त भगवान् के चरण 'श्रालम्बनं भवजले पतताम् जनानाम्' हैं । अर्थात् भव रूपी समुद्र में गिरते हुए मनुष्यों के लिए श्रालम्बन हैं। जिस प्रकार ऊपर चढ़ता हुआ मनुष्य अगर नीचे गिरने लगे और उसे रस्सी का सहारा मिल जाय तो वह गिरने से बच जाता है, उसी प्रकार इस भव-समुद्र में गिरते हुए जीवों को बचाने के लिए भगवान् के चरण अवलम्बन हैं । इतना ही नहीं, बल्कि जैसे कोई पुरुष कुए में गिर पड़ा हो और वह रस्सी का सहारा लेकर बाहर श्रा जाता है, उसी प्रकार इस भव-समुद्र में पड़े हुए को बाहर निकालने के लिए भी भगवान् के चरण अवलम्बन हैं । कुए में पड़ा मनुष्य विना सहारे के नहीं निकल सकता, उसी प्रकार इस भवकूप में पड़ा हुआ मनुष्य भी विना सहारा पाये नहीं निकल सकता । अर्थात् उसका उद्धार नहीं हो सकता । श्राचार्य कहते हैं- भगवान् ऋषभदेव के चरण इस भव रूप कूप से निकालने के लिए अवलम्बन हैं। यह भी भगवान् के चरण की विशिष्टता है । इन विशेषताओं के कारण भगवान् के खरण सूर्य से भी विशिष्ट हैं । सूर्य द्रव्य प्रकाश तो देता है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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