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भगवान आदिनाथ की स्तुति करते हुए आचार्य मानतुंग कहते हैं-जिनकी स्तुति इन्द्र ने ऐसे मनोहर स्तोत्र द्वारा की है कि जिस पर तीनों लोकों के जीव मुग्ध हो जावें. उन भगवान् की स्तुति में भी करूँगा। उन भगवान् के चरणों पर इंद्र ने अपना मुकुट नमाया है और उसके मुकुट की मणियां भगवान् के चरणों के प्रकाश से प्रकाशित हो उठी हैं।
प्रश्न हो सकता है-इन जड़ वस्तुओं को तो सूर्य भी प्रकाशित कर सकता है। सूर्य के सामने मणि चमक भी उठती है। ऐसी स्थिति में भगवान के चरणों की प्रभा से अगर मणि प्रकाशित हो उठी तो इसमें कौन-सी बड़ी बात हो गई ! ___ स्तुति में इस प्रश्न का समाधान कर दिया गया है। प्राचार्य कहते हैं-भगवान् के चरण 'दलितपापतमोवितानम् हैं। अर्थात् भय एवं अज्ञान आदि रूपी मोह-अंधकार भी भगवान के चरणों के प्रकाश से नष्ट हो जाता है। जो भव्य पुरुष भावपूर्वक भगवान् के चरणों में प्रणाम करता है, उसके अन्तःकरण में मोह का अंधकार नहीं ठहर सकता।
चारित्र, आचरण, संयम और सदाचार-इन चारों को
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