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________________ बीकानेर के व्याख्यान ] [१६६ देखता है और अक्षरज्ञान वाला भी देखता है। पर दोनों के देखने में कितना अन्तर है ? यही अन्तर मिथ्याज्ञानी और तत्त्वज्ञानी के जानने में होता है। तत्व का निर्णय करना बुद्धि का काम है। तत्त्व क्या है और अतत्व क्या है, इस बात को जाने विना अात्मा जड़ के समान है। तत्त्व-अतत्त्व का निर्णय किये विना बुद्धि का पाना और न पाना समान है और ऐसा पुरुष पशु से बढ़कर नहीं कहा जा सकता। __ प्रश्न हो सकता है कि तत्त्वज्ञान कहाँ से निकलता है और उसके प्राप्त होने पर आत्मा को क्या लाभ होता है ? तत्त्वशान का प्रादुर्भाव होने पर आत्मा में क्या विशिष्ट परिवर्तन हो जाता है ? क्या कोई ऐसी शक्ति प्राप्त होती है जो पहले प्राप्त न हुई हो ? इस प्रश्न के उत्तर में शास्त्र कहता है कि आत्मतत्त्व के जान लेने पर इससे भी बड़ी बात होती है। मगर मुंह से कह देने मात्र से कुछ नहीं होता। असलियत का पता तो अनुभव करने से चलता है। ज्ञान को जब क्रिया के रूप में परिणत किया जाता है तभी सिद्धि मिलती है। अगर क्रिया हुई और ज्ञान नहीं हुआ तो अंधाधुंधी चलेगी। अतएव यह आवश्यक है कि शान और क्रिया का समन्वय करके सिद्धि प्राप्त की बाय । अनन्त बार नरक की दुस्सह वेदना भोगने पर भी दुःखों का अन्त नहीं पाया। अब कब का दुःख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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