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________________ १६६] [ जवाहर-किरणावली स्थिति में उसके देखने से आत्मा का पतन नहीं होगा। महाभारत में एक कथा है । अर्जुन तप कर रहे थे। उन्हें डिगाने के लिए एक अप्सरा आई । उसने विकारजनक हावभाव दिखाने में जरा भी कसर नहीं रक्खी । लेकिन अर्जुन ने उसके रंगरूप की प्रशंसा करते हुए कहा-अगर मैं इस पेट से जन्मा होता तो मेरा रूप भी ऐसा ही होता! इस विचार के कारण अर्जुन को जो सिद्धि बहुत दिनों में प्राप्त होने वाली श्री वह उसी क्षण प्राप्त हो गई। बुरे काम से बचने के लिए कइयों ने अपनी आंखें ही फोड़ ली हैं । सूरदास के विषय में यह बात प्रसिद्ध है। भक्त तुकाराम कहते हैं पापाची वासना नको दाउ डोला। त्यातुन बांधला बराच मी ॥ वह कहते हैं-प्रभो ! मुझ पर अगर तेरी कृपा है तो तू इतना कर कि मेरी आंखों में पाप की भावना न आने पावे । अगर तू इतना नहीं कर सकता तो मुझे अंधा तो बना दे ! मैं अन्धा होना अच्छा समझता हूँ मगर विकारयुक्त आंखों से पराई स्त्री को देखना पसंद नहीं करता। ___ इस प्रकार एक-एक इंद्रिय के संबंध में विचार करो और चौकसी करते रहो कि वह कहाँ-कहाँ जाती है और क्या-क्या करती है ? ऐसा करके .अगर आपने इंद्रियों को अच्छे काम में लगा दिया तो प्रात्मा कल्पवृक्ष बन जायगा। इस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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