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________________ १९२] [ जवाहर-किरणावली -.- -.-.-.-- - -- का बदला चुकाना भी कठिन हो जायगा । लोगों ने यह दूध हमें तप-संयम पालने के लिए दिया है, विकारों का पोषण करने के लिए नहीं दिया है। धन्ना मुनि वेले-वेले का तप करते हुए पारणे में ऐसा आहार लेते थे जिसे भिखारी भी पसंद न करे । ऐसा आहार करते हुए भी वे तप करते थे । हे आत्मन् ! विचार कर कि वे तो नीरस और रूखा-सूखा आहार करके भी तप करते थे और तू कैसा आहार करना है और उसके बदले में क्या करता है ? इस प्रकार का विचार करने वाला अपनी जीभ पर अंकुश रख सकेगा और उसकी धारणा बन जायगी कि भोजन जीभ को संतुष्ट करने के लिए नहीं है, वरन तप और संयम की वृद्धि के लिये है । भोजन करके जो तप और संयम का पालन करता है, उसका भोजन करना सार्थक है। जो ऐसा नहीं करता वह अपने माथे पर कज़ चढ़ा रहा है। दिन और रात्रि संबंधी प्रतिक्रमण का अर्थ क्या है ? इनकी नियमितता पर शास्त्र में जो जोर दिया गया है, उस का रहस्य क्या है ? जो गृहस्थ या साधु प्रतिक्रमण के असली रहस्य और उद्देश्य को समझकर भावपूर्वक प्रतिक्रमण करेगा, उसके जीवन में उत्क्रान्ति हुए बिना नहीं रह सकती। जो ज्यादा बढ़िया खाना खाता है और बढ़िया कपड़ा पहनता है, उसे समझना चाहिए कि मुझे इसका ज्यादा बदला देभपड़ेगा। होटल में जाकर एक आदमी चने चबाता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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