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________________ बीकानेर के व्याख्यान ] [१६१ सोने के समय रुपयों के आय-व्यय का हिसाब कर लेते हो, लेकिन कभी यह भी देखते हो कि मैंने अनन्त पुर। के बदले में नवीन कमाई क्या की है ? कहीं ऐसा तो नहीं है कि मूल पूंजी ही आप समाप्त कर रहे हों ? ___खान-पान की सामग्री शुभ कर्म के उदय से मिलती है और शुभ कर्म, क्रिया से उपार्जित किये जाते हैं। श्रमण के नाम और गोत्र के श्रवण से भी पुण्य की प्राप्ति होती है। इसका अर्थ यह निकला कि-'हे प्रभो ! मैं तुम्हारा ही दिया खाता हूँ। इस प्रकार की भावना से अहंकार का त्याग होता है। अब यह विचार करना उचित है कि मैं भगवान के घर का खाता तो हूँ परन्तु बदला क्या चुकाता हूँ? मैंने कल उपवास किया था। आज दूध पीने लगा तो वह दूध बहुत स्वादिष्ट लगा। उस समय में विचारने लगा कि इस एक-एक बूंट दृध की कीमत क्या है ? यह कैसे पैदा हुआ ? साधु होने के कारण हम इसे माँग लाये, अन्यथा हमें इसके माँगने का क्या अधिकार है ? गृहस्थों ने गाय पाल रक्खी है । वे उसे खिलाते-पिलाते हैं और बदले में दूध लेते हैं । परन्तु हमने क्या गाय पाल रक्खी है ? मगर तप और संयम के लिए इस शरीर की रक्षा करना है, इसलिए माँग लाये । तप-संयम के नाम पर लाये हुए दूध को पीकर अगर पारमाता संया में लगा, तव तो उचित है, अन्यथा एक छूट Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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