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________________ बीकानेर के व्याख्यान ] [१८५ --------- ----- - -- -- -..--..-- -- ---- - - - उसके मिलने पर आत्मा अपने संबंध में विचार करता है, तब उसके नेत्र खुल जाते हैं। उस समय उसकी समझ में प्राता है अप्पा कत्ता विकत्ता य दुक्खाण य सुहाण व । अरे मानव ! तू भ्रम में क्यों पड़ा है ? अपने अन्तरतर की ओर देख । वहीं तो वह बड़ा कारखाना चल रहा है जहाँ सुख और दुःख तेरी भावनाओं के साँचे में ढल रहे हैं ! और तू बाहर की ओर देखता है ? कस्तूरीमृग कस्तूरी की खोज के लिए इधर-उधर भागता फिरता है। उसे नहीं मालूम कि कस्तूरी बाहर नहीं, उसी के भीतर है। यही दशा तेरी है। तू महात्माओं की वाणी सुन । वीतराग के कथन पर श्रद्धा कर और समझ ले कि अपने सुख-दुःख का दाता तू आप ही है। तुझे सुख या दुःख देने का सामर्थ्य दूसरे में नहीं है। अगर सोने-चांदी में सुख होता तो सब से पहले सोने-चांदी वालों की ही गर्दन क्यों काटी जाती ? स्त्री से सुख होता तो ज़हर क्यों दिया जाता? इन सब वाह्य वस्तुओं से सुख होने का भ्रम दूर कर दे । निश्चय समझ ले कि सुख तेरी शान्ति, समता, संतोष और स्वस्थता में समाया है। तेरी भावनाएँ ही सुख को उत्पन्न करती हैं। स्त्री, पुत्र और धनवैभव का अहंकार छोड़ दे। दुःख के विषय में भी यही बात है। समस्त संसार की शक्तियाँ संगठित होकर भी तुझे दुखी नहीं बना सकतीं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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