________________
बीकानेर के व्याख्यान]
[१७७
दृढ़ता के साथ कहा-खर, यह तो राजा का ही कोप है, अगर इन्द्र का कोप होता और मैं सहायता न देता तो आपका मित्र ही कैसा ? आप ऊपर चलिए और निश्चिन्त होकर रहिये । यह घर आपका ही है।
प्रधान की प्रसन्नता का पार न रहा। मन ही मन कहाइसे कहते हैं मित्रता!समय पर ही मित्रता की पहिचान होती है।
प्रधान अपने मित्र के साथ भीतर गया। मित्र ने उसका सत्कार करके कहा-अगर आपकी कोई आवश्यकता हो तो विना संकोच कह दीजिए । प्रधान के मना करने पर उसने कहा-मनुष्य मात्र भूल का पात्र है। अगर कोई भूल हो गई हो तो आप मुझसे छिपाइए नहीं। सच-सच कह दीजिए । रोग का ठीक तरह से पता लगने पर ही सही इलाज़ हो सकता है।
प्रधान सोचने लगा-अपनी बात ऐसे मित्र से नहीं कहूँगा तो किससे कहूँगा? और प्रधान ने उसके सामने अपना दिल खोलकर रख दिया । मित्र ने उसे आश्वासन दिया।
प्रातःकाल प्रधान के घर की तलाशी ली गई। तभी पता चला कि प्रधान घर में नहीं है। चुगलखोरों की बन आई। कहा-प्रधान अपराधी न होता तो भागता ही क्यों ? भागना ही उसके अपराधी होने का सबसे बड़ा सबूत है। गजा के दिल में बात उस गई। उसने कहा-ठीक है। पर भागकर जायगा कहाँ ? जहाँ भी होगा पकड़वा कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com