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________________ १५६] [ जवाहर-किरणावली 'भगवन् ! ज्ञान इसी भव में साथ रहता है या परभव में भी?' भगगन ने उत्तर दिया-'इस भव में भी साथ रहता है और परभव में भी साथ रहता है।' मतलब यह है कि क्रिया की समाप्ति ज्ञान में हो जाती है। अतएव ज्ञान के समान अन्य कोई भी वस्तु नहीं है। मगर यह मत भूल जाना कि ज्ञान की पवित्रता को जान लेने मात्र से ही ज्ञान नहीं होता। ज्ञानी पुरुषों का चारित्र तो उनके अंतिम शरीर के साथ समाप्त हो गया है, परन्तु उस चारित्र का ज्ञान अभी तक मौजूद है। आप ज्ञान से ही भगवान् महावीर को पहिचानते हैं। लेकिन आज हँसी-मज़ाक में ज्ञान का नाश हो रहा है। आज बालकों और युवकों के दिमाग में ज़हर भरने वाले, कुवासनाओं को उत्तेजित करने वाले उपन्यासों के ढेर लग रहे हैं। इन्हें शान या ज्ञान का साधन समझ लेना विष को पीयूष समझ लेता है। यह पुस्तकें भुलावे में डालने वाली हैं । इनसे भारतवर्ष की पवित्र संस्कृति का सत्तानाश हो रहा है । जिसके प्रताप से कार्य की सिद्धि हो जाने पर कर्म मात्र का परित्याग हो जाय वही सच्चा झान है। गीता का एक श्लोक है ___ यत्र योगेश्वरः कृष्णो यन्त्र पार्थो धनुर्धरः। . अर्यात्-योगेश्वर कृष्ण और धनुर्धर अर्जुन जिस ओर हैं, उसी ओर विजयश्री, ध्रुव नीति आदि हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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