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बीकानेर के व्याख्यान ]
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तंत्र जीवन में ही जीवन का आनन्द मानते हैं, उन्हें क्रिया का महत्व कैसे मालूम हो सकता है ? लेकिन विना क्रिया के स्वतंत्रता नहीं है और स्वतंत्रता न होने के कारण हाय-हाय मची है ।
अगर आप पराधीनता और परावलम्बन का त्याग नहीं कर सकते तो कम से कम पराधीनता पर गर्व करना तो त्याग सकते हैं ! आप उत्तम स्वादिष्ट भोजन करके गर्व करते हैं, लेकिन समझ नहीं आता कि आपके गर्व का आधार क्या है ? आपने दूसरे का दिया खाया है, फिर गर्व क्यों ? गर्व हो तो भोजन बनाने वाली बाई को है। सकता है । वह सोच सकती हैं कि मैंने बढ़िया भोजन बनाकर दूसरों का पेट भरा है ! आप किस बात पर अहंकार कर सकते हैं ? और असल में उस बाई को भी गर्व करने का अधिकार नहीं है; क्योंकि उसने अन्न पैदा नहीं किया है । अन्न किसान पैदा करता है । कदाचित् किसान का गर्व समझ में आ सकता है। आप अपनी असमर्थता पर, पराधीनता पर और परावलम्बन पर गर्व करें तो आपकी मर्ज़ी !
मित्रो ! आपका ज्ञान, क्रिया को छोड़कर खाने-पीने में ही कल्याण समझ बैठा है और इसी कारण आप अहंकार करते हैं । अहंकार के बदले आत्मनिन्दा करो और तत्त्व की गहराई में जाकर विचार करो तो आपका अहंकार बिलीन
हो जायगा ।
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