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[ जवाहर - किरणावली
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धर्मस्य तस्वं निहितं गुहायां,
महाजनो येन गतः स पन्थाः ॥
अर्थात् - तर्क अस्थिर है। गेंद की तरह वादी प्रतिवादी के वचनों की ठोकर खाकर वह इधर-उधर लुढ़कता फिरत ( है। श्रुति स्मृति आदि के निर्माताओं की मति भिन्न-भिन्न होने से श्रुति स्मृति का कथन भी भिन्न-भिन्न है । इस भिन्न-भिन्न
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कथन की गड़बड़ में लोग पड़ गये हैं और इस कारण धर्म का तत्त्व इतना दूर चला गया है मानों गुफा में छिप गया है । लोग विचार करते हैं कि इस काल में हम क्या करें ? सब मतों का अध्ययन करके अगर उनका निचोड़ निकालना चाहें तो यह संभव नहीं । संसार में इतने अधिक मत और पन्थ हैं और इतने अधिक ग्रन्थ एवं शास्त्र हैं कि सारी उम्र व्यतीत हो जाने पर भी उनके अध्ययन का अन्त नहीं सकता । ऐसी विकट परिस्थिति में आत्मा का कल्याण किस प्रकार किया जाय ?
दुनिया की इस स्थिति में ग्रंथकार कहते हैं - घबराओ मत । जिस मार्ग पर महापुरुष चले हैं उसी मार्ग पर चलो और चलते ही रहो। उसी मार्ग पर चलने में कल्याण है । उस पर चलने से अकल्याण नहीं हो सकता ।
तत्र प्रश्न खड़ा होता है कि महापुरुष कौन ? प्रत्येक मत और पन्थ वाले अपने-अपने मत और पन्थ को महापुरुष का मत और पन्थ कहते हैं और वे परस्पर में विरोधी हैं। ऐसी
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