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बीकानेर के व्याख्यान:]
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जिन नास्तिकों ने शरीर के साथ ही आत्मा का नाश मान रक्खा है, उन नास्तिकों के लिए यह उपदेश नहीं है। यह उपदेश आस्तिकों के लिए है। आस्तिक तो इस शरीर को वस्त्र के समान समझते हैं । वस्त्र के बदल जाने से जैसे पुरुष नहीं बदल जाता, उसी प्रकार शरीर के बदलने पर आत्मा नहीं बदलता । सिर काटने वाला वैरी अनित्य शरीर का ही नाश करता है, नित्य आत्मा का नहीं। सिर काटने वाले वैरी से अगर द्वेष न किया जाय तो वह कुछ भी हानि नहीं पहुँचा सकता। यही नहीं, बल्कि यह आत्मा की मुक्ति में उसी प्रकार सहायक बन जाता है जैसे गजसुकुमार मुनि के लिए सोमल ब्राह्मण सहायक बना था । अतएव तात्त्विक दृष्टि से (निश्चयनय से ) विचार किया जाय तो दूसर। कोई भी हमारा सिर नहीं काट सकता । हमारा सिर हम स्वयं ही काट सकते हैं। हमने बुरे कर्म किये होंगे तो इसी कारण कोई हमारा सिर काट सकता है। बुरे कर्म न किये हों तो लाख प्रयत्न करने पर भी कोई हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता ।
ज्ञानस्वरूप आत्मा सिंह के समान पूर्ण अधिकारी है और शानविकल आत्मा कुत्ते के समान है। कुत्ते को कोई ईंट या पत्थर मारता है तो कुत्ता उस पत्थर या इंट को काटने के लिए झपटता है । वह समझता है कि यह पत्थर या ईट ही मुझे मारने वाला है। किन्तु सिंह ऐसा नहीं करता । सिंह को गोली मातीर लगता है तो वह मारने वाले की तरफ दौड़ता है। वह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com