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जवाहर-किरणावली)
• वैती गृहस्थजीवन में नहीं। इस कारण निवृत्तिमय जीवन
अंगीकार किया जाता है। निवृत्तिमय जीवन का अर्थ यह नहीं है कि कोई साधु बनकर निठल्ला बैठा रहे और किसी कर्तव्य का पालन ही न करे। साधुअवस्था की निवृत्ति का अर्थ यह है कि वह गृहस्थी के कामों में नहीं पड़ता। धन कमाना, मकान बनवाना, बाल-बच्चों का विवाह करना आदि कार्यों से साधु मुक्त हो जाता है। इनकार्यों से निवृत्त होकर साधु अपनी प्रवृत्तियों का क्षेत्र नया बनाता है। वह अपनी आत्मा के शाश्वत श्रेय को लक्ष्य बनाकर महान् कर्तव्यों को स्वीकार करता है। साधु की प्रवृत्ति आध्यात्मिक साधना के उद्देश्य से होती है। अतएव वह ऊँचे दर्जे की प्रवृत्ति करता है और जगत् के हित का भी कारण बनता है। ___ साधु होना आत्मा को स्वतंत्र बनाना है। अतएव साधु बनकर अपनी आत्मा को उच्च बनाना उचित है । इसके विपरीत जो लोग साधु होकर भी आत्मा को नीचे गिराते हैं, वे अपना ऐसा अहित करते हैं जैसा सिर काटने वाला वैरी भी नहीं कर सकता। ऐसे दुरात्मा को कंठ छेदने वाले वैरी से भी अधिक वैरी समझो।
कहा जा सकता है कि सिर काटने वाला वैरी तो प्रत्यक्ष में शरीर का विनाश करता है किन्तु दुरात्मा ऐसा कुछ नहीं करता। फिर दुरात्मा को कंठ छेदने वाले वैरी से भी अधिक
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