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अग्रणी पुरुष जिस कामकी तरफ अपना लक्षलगावेंगे उसी मार्गमें अन्य लोगभी चलेंगे यह स्पष्टही है. कहा है कि "यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः ॥ सो अब देखिए जगहजगहपर इन सेठ लोगोंका अनुकरण बडे जोरसे चलता देखनेमें आवेगा ऐसी मुझें उमेद है.
सज्जन महाशय, जो कुछ उन्नति दुनियाभर में देखने में आती है सो सभी एक ज्ञानके ही आश्रयसे है यह आप जानते हैं. इंग्लंड, जर्मनी, अमेरिका, फ्रान्स, जपान इत्यादि देशोंमें जो कुछ ऐहिक विभूतिकी उन्नति हुईहै सो सभी विद्यावृद्धीसे ही हुई है. इस भारत वर्षमें जो कुछ पहले उन्नति थी सो भी ज्ञानकी बढवारीसे ही थी. और अभी जो कुछ हीनदशा आप देखते हैं सो ज्ञानकी न्यूनतासेही है. अब इस हीन दशामेंसे आपनेको निकालना चाहते हों तो आपनेको ज्ञानवृद्धीमें ही तन मन धनसे दत्तचित्त रहना पडेगा. माने आप पढना, औरोंको पढाना, पढनेवालेको मदत देना, पाठशाला स्थापित कराना, बोर्डिंगा स्थापित कराना, पढनेवालोंको पुस्तकें देना, खानेको देना, रहनेको मकान देना, वजीफा देना, पारितोषिक देना, हरएक रीतिसे ज्ञानदानमें ही अपने धनको लगाना. रात्रंदिन ज्ञानका ही मंत्र जपते रहना जिसको आचार्योंने अभीक्ष्णज्ञानोपयोग कहा है. आहार, औषध, अभय और ज्ञान ऐसे चार प्रकारके दान आचार्योने जगह जगह बतलाये हैं. जिनमेंसे इस समय ज्ञानदान सबसे श्रेष्ठ है ऐसा आप समझना और औरों को समझाना. जैसा त्याग धर्मके वर्णनमें श्रीमद्भट्टाकलंकदेवने राजवार्तिकमें लिखा है -
"आहारो दत्तः पात्राय तस्मिनहनि तत्पीतिहेतुर्भवति । अभयदानमुपपादितमेकभवव्यसननोदनकरं, सम्यग्ज्ञानदानं पुनरनेकभवशतसहस्रदुःखोत्तरणकारणमत एव तत्रिविधं यथाविधि प्रतिपद्यमानं त्यागव्यपदेशभाग्भवति ।
अर्थातः-आहार दान देनेसे वह उस दिनतकका उपकार
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