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(१३) सज्जनवृंद, बिचार कीजिए यह जैनाचार्योंकी तारीफ वर्णन करनेवाला कोन है ? यह कोई साधारण मनुष्य नहीं है. किंतु जिनको अपनी ब्रिटिश गव्हर्नमेंटने दुनियाभरके मजहब और शास्त्रोंको खोजकर उनमेंसे रहस्य क्याहै सो प्रकाशित करनेके लिये बंगाल प्रांतमें नियत किए ऐसे महामहोपाध्याय डाक्टर शतीशचंद्र विद्याभूषण हैं !!
भ्रातृगण, इस मूजब हमारे अंतःकरणरूपी भूमीका शोधन, और हमारे परम हितोपदेशी आचार्योंके अमृतरूपी जलाशय, हमको उपलब्ध हैं तो फिर हमारी उन्नति होनेमें क्या कठिनता है ? फकत इन जलाशयोंमेंका जल बैंचकर हमारे अंतःकरणरूपी भूमीपर सिंचन करनेवालेका सहारा हमको मिलगया तो बस; हम अपना कार्य सहज रीतिसे कर सकते हैं. जल बैंचकर सिंचन होनेकी सामग्री भी अनुकूल दीखने लगी है. देखिए, सौ दोसौ वर्ष पहिले हमको ज्ञान संपादन करनेमें बड़ी दिक्कत पडती थी. परंतु अब हमारी दयालु ब्रिटिश गव्हर्नमेंटकी कृपासे हम चाहें जितना ज्ञानसंपादन कर सकते हैं. सभी भारतवर्षके छोटे छोटे गांव खेडोंमेंभी बालकोंके लिये प्राथमिक शिक्षाकी शालाएं स्थापित हुई हैं, और हो रही हैं. राजा महाराजा
ओंने भी अपने अपने प्रांतमें प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चश्रेणीकी शिक्षाका प्रबंध कर दिया है. सौ दोसौ वर्ष पहिलेके राजा महाराजा जैनियोंको विद्या पढाने में मदत नहीं देतेथे. परंतु आजकल झैसूरके महाराजा, बडोदा नरेश, कोल्हापूरके महाराजा, इस इंद्रपुरीके सरकार होळकर महाराजा इत्यादिकी तरफसे जैनियोंकों ज्ञानसंपादनमें बहुतही मदत मिलरही है, यह बडी अनुकूल सामग्री समझना चाहिए. हमारे जैनी भाईयोंका उदार चित्त अबतक मंदिर बनवाना, प्रतिष्ठा कराना, मेला, रथजात्रा इत्यादि कार्योंमें ही अपना धन वितरण करनेमें लगताथा; जिसकेकि एवजमें जैनबोर्डिंग स्थापित करना, जैन पाठशालाएं स्थापित करना, जैन महाविद्यालय चलाना, जैन हायस्कूल खोलना, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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