________________
(८)
रस्तेपर दुकान दुकान भीख मांगता देखने में आता नहीं. जेलखानेकी संख्याका अवलोकन करनेसे भी मालूम होता है कि, लोकसंख्याके हिसाबसे मुसलमान और खिस्ती छःसोंमे एक बोद्ध साडे सातसोमें एक, हिंदू तेरासोमें एक, पारसी अढाई हजारमें एक, और जैनी सात हजार में एक जैल खानेमें पडा है ऐसा देखनेमें आता है इससे सिद्ध होता है कि जैनी पाप कर्मोंसे डरते रहते हैं. जैनी कुछ ना कुछ रोजगार, नौकरी, दलाली, इत्यादि करके आजीविका करता है. इस विषयमें रायबहादूर जाधव कोल्हापूर राजके सेन्सस रिपोर्टर अपनें रिपोर्टमें लिखते हैं,
“ Their ( Jains ) habits of industry, temperance, economy and frugality have preserved their material prosperity and they are generally better off than either the Hindus or the Musalmans.”
अर्थातः-" जैनियोंकी उद्योग करनेकी, मिताहारकी और मितव्ययकी आदतोंसे उनकी आर्थिक उन्नति बनी रही है. और जैनी लोक बहुत कुछ बातोंमें हिंदु और मुसलमानोंसे बहुत अछी स्थितीमें हैं."
इस मूजब स्वावलंबनका परम कल्याणकारी मार्ग हमारे निस्पृह आचार्योंने अपने ग्रंथोंद्वारा दिखलानेसे हमारा इतना भूमिशोधन हुवा है इसमें संदेह नहीं. देखिये, श्रावक धर्ममें पंच अणुव्रत तीन गुणव्रत,
और चार शिक्षाबत पालन करना, सात व्यसनोंका छोडना, मद्य, मांस मधु इनका त्याग करना इत्यादि वर्णन हरएक ग्रंथमें देखनेमें आता है. सबसे प्राचीन आचार्य श्रीमत कुंदकुंदाचार्य अपने चारित्र पाहुडमें श्रावकधर्मका वर्णन करते क्या कहते हैं
पंचेवणुव्वयाइं गुणव्वयाई हवंति तह तिण्णि। सिक्रवावय चत्तारि संजम सरणं च सायारं ॥२३॥
अर्थातः-पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत, और चार शिक्षाव्रत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com