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________________ ऐसे सागार अर्थात श्रावकका चारित्र होता है, श्री कुंदकुंदस्वामीके शिष्य श्रीउमास्वामी अपने तत्वार्थसूत्रके सातवे अध्यायमें श्रावकधर्मका वर्णन करते एक सूत्र कहते हैं अणुव्रतोगारी. अर्थातः-पांच अणुव्रतोंको धारण करनेवाला जो हो उसे आगारी नाम श्रावक कहना चाहिये. इनके पीछे इनके शिष्य श्री समंतभद्राचार्य अपने रत्नकरंडकोपासकाध्ययनमें श्रावकका चारित्र वर्णन करते लिखते हैं गृहिणां त्रेधा तिष्ठत्यणुगुणशिक्षाव्रतात्मकं चरणम् । पञ्चत्रिचतुर्भेदं त्रयं यथासंख्यमाख्यातम् ॥ अर्थातः-गृहस्थ के पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत ये सब मिलनेसे चारित्र होता है. और श्रावकके मूलगूण जिनके बिना श्रावक कहा नहीं जाता वे इस मूजब कहे हैं-- मद्यमांसमधुत्यागैः सहाणुव्रतपञ्चकम् । अष्टौ मूलगुणानाहुहिणां श्रमणोत्तमाः ॥ अर्थातः-मद्य, मांस और सहत इनका त्याग, और पांच अणुव्रतोंका पालन करना, ये गृहस्थ श्रावकके आठ मूलगूण आचार्योंने कहे हैं. ऐसे ही आगे आचार्यपरंपरासे उपदेश दिया गया है. जिससे कि यह भूमिशोधन हुवा है. भातृगण, हमारे आचार्य हमारे लिये केवल श्रावकधर्मका उपदेश देकरही चुप रहेहो ऐसा नहीं, किंतु उनोंने अध्यात्मज्ञानमें और न्यायशास्त्रमें बड़ी भारी प्रवीणता संपादन की है, जिसकी कि अपने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034888
Book TitleJaina Gazette 1914
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ L Jaini, Ajitprasad
PublisherJaina Gazettee Office
Publication Year1914
Total Pages332
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size21 MB
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