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________________ ( २४ ) अनुमोदन दिया हो तो वह पाप मिथ्या हो. इस प्रकार पांचो अणुव्रत तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रतोंके अतिचारोंका उच्चारण प्रतिदिन यदि प्रात:काल और सायंकाल किया जाय तो अपना अंतःकरण पाप कर्मोंसे डरता रहेगा. यह प्रतिक्रमणका पाठ केवल वाणिज्य करनेवालेको ही क्या किंतु असि, मसि, कृषी, वाणिज्य, शिल्प और पशुपालन ऐसी छह प्रकारकी आजीविका करनेवाले सभीकी उन्नति करनेमें सहायता देताहै, और परभवमें दुःखोंसे छुडाकर जीवको सुखी बनाता है. इसके पाठका प्रचार खूब बढना चाहिये. और संस्कारविधीमें कहे मूजब पांच अणुव्रत और तीन मकारका त्याग ऐसे आठ मूळ गुणों का प्रतिज्ञापूर्वक ग्रहण जिसमें बताया है ऐसी उपनीतीक्रिया बालकोंको आठवें वर्ष मेंही करानेका हुकूम है, सो उसको भी प्रचारमे लाना चाहिये. भातृगण, इस प्रकार अनाचार, कुरीतियां मिटगई और परस्परमें विश्वास बढगया तो ऐकता भी बढ जाती है. प्रत्येक मनुष्य बिचारता है कि मेरे अभिप्रायको सभी पसंद करें, और मेरे अभिप्रायसे मिलें. यदि विचार न मिले तो ऐकता टूट गई ऐसा शीघ्रही मानने लगते हैं. परंतु ऐसी सर्वथा ऐकता कहीं भी नहीं मिलेगी. भाई भाईमें भी नहीं मिलेगी, पितापुत्र में भी नहीं मिलेगी, पतिपत्नी में भी नहीं मिलेगी. इतनाही नहीं लेकिन संपूर्ण कर्मोंसे मुक्त ऐसे सिद्ध भगवान अनंत गुणयुक्त जो मोक्षस्थानमें विराजमान हैं और जिनको व्यवहारनयसे ज्योती में ज्योती मिलगई ऐसा भी कहते हैं, वेभी वहांपर अपने पूर्व भवके शरीर की अवगाहनासमान अलग अलग तिष्टे हैं. हां, अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन ये गुण सभके समान हैं. सर्व प्राणियोंसे मैत्री जो गुणाधिक हो उसमे प्रमोद, क्लिश्यमानके साथ करुणाभाव और विरोधियोंसे मध्यस्थभाव ऐसे परिणाम रखनेसे एकता अच्छी पल सकती है. जहांतक अपना अभिप्राय मित्रताहो उतना मिलाकर ऐकता कर लेनी चाहिये. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034888
Book TitleJaina Gazette 1914
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ L Jaini, Ajitprasad
PublisherJaina Gazettee Office
Publication Year1914
Total Pages332
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size21 MB
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