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________________ ( १८) निषेधही किया गया है. बालविवाहके वास्ते 'अष्टवर्षाभवेत् कन्या' इत्यादि अन्य मतीकेसे हुकूम जैनशास्त्रोंमें नहीं हैं. वैसे ही 'अपुत्रस्य गतिर्नास्ति' इत्यादि वृद्धविवाहके अनुकूल ऐसे वाक्यभी जैनशास्त्रोंमें नहीं है. किंतु जैनशास्त्रोंका प्रचार अज्ञानताके वश कम हो जानेसे और अन्यमतियोंके धर्मशास्त्र और ज्योतिष फलित शास्त्रोंका प्रचार उनके अधिक सहवासके कारण जैनियोंमें फैल जानसे कुरीतियां प्रचलित होगई हैं. होलीके दिनोंमें जो कुछ बीभत्स प्रकार अन्यमतियों में प्रचलित है उसको उनके धर्म शास्त्रका थोडा बहुत भी आधार मिलता है. परंतु जैनशास्त्रों में होलीके बीभत्स आचरणका बिलकुल निषेध होनेपर भी कई जैनीभाई इस घृणायुक्त होलिकामहोत्सवमें सामिल हुये देखनेमें आते हैं. वैसे ही बालविवाह वृद्धविवाह, कन्याविक्रय, वेश्यानृत्य, फिजूल खर्ची इत्यादि कुरीतियां भी जैनियोंमें दूसरोंके संसर्गसेही धस गई हैं. सज्जनवृंद, आप जानते हैं कि चौदह पंद्रह लाख जैनियोंके सभोवार तेतीस कोटि अन्यमतियोंका घेरा पड जानेसे " बंधेधिकौपारिणामिकौ च " इस सिद्धांत के अनुप्तार जैसे न्यून संख्याके परमाणू अधिक संख्याके परमाणु रूप परिणम जाते हैं, वैसेही हमारे जैनीभाई भी औरोंके सहवाससे अपनी शक्तीको भूलकर मिथ्या कुरीतियोंको पकड बैठे हैं. दौलतरामजीने कहा है कि " ज्यों शुक नभचाल विसर नलिनी लटकायो। अपनी सुध भूलि आप आप दुख उपायो।" अर्थात् जैसे तोता नलिनीचक्रपर बैठते ही चक्र फिर जानेसे नीचे आजाता है. और उडजानेकी अपनी शक्ती भूल जाता है. उसी मूजब कई जैनीभाई अपने धर्मको और अपने शास्त्रको भूल गये हैं. उनको धर्मोपदेश देकर सचेत करना चाहिये. फिजूल खर्ची अर्थात् अपने ताकतके बाहार जो खर्च होता है सो परिग्रहप्रमाण अणुव्रतका और अनर्थदंड त्याग गुणव्रतका पालन करनेसे मिट जायगा. वेश्यानृत्य बहुत करके श्रीमंतोंके घरमें विवाह शादियोंके अवसरमें ही देखनेमें आता है. उनको भी परस्त्रीत्याग अणुव्रतके अतिचारोंमें जो इत्वरिकागमन नामक अतिचार है उसका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034888
Book TitleJaina Gazette 1914
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ L Jaini, Ajitprasad
PublisherJaina Gazettee Office
Publication Year1914
Total Pages332
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size21 MB
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