SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१७) युगपत जानता है, और जिससे अनंत सुखका अनुभव करता है. भ्रातृगण, मैने यहांतक तो अपने उन्नतीकी जो अनुकूल सामग्री इस समय उपलब्ध है और उसका मूलभूत उपाय जो ज्ञानवृद्धि उसकी आवश्यकता बतलाई है. अब इस ज्ञानके आश्रयसे ही कुरीतियोंका मेटना, व्यापारवृद्धि होना और परस्परमें ऐक्यवृद्धी होना इत्यादि अभीष्टसिद्धि हो सकेगी इस विषयपर कुछ कहूंगा. कुरीतियोंके मिथ्यात्व, अन्याय और अभक्ष्य ये तीन सदर खाते हो सकते हैं. इन तीन खातेमें बालविवाह, वृद्धविवाह, कन्या विक्रय, फिजूल खर्ची, वेश्यानृत्य, इत्यादि कई कुरीतिया गर्भित हो सकती हैं. एक अज्ञान नष्ट होनेसे सदसद्विचारशक्ति खुलती है. विचारशक्ति प्रगट होनेसे अच्छे बुरेका विचार उत्पन्न होता है. और उस समय उसको अच्छे उपदेशकका निमित्त मिल जानेसे पाप प्रवृत्ती भी छूट जाती है. कदाचित् उस समय अप्रत्याख्यानावरणीके उदयसे उससे पापाचरण नहीं छूटा तो भी उसका अनंतानुबंधीका और दर्शनमोहनीयका उपशम, क्षय अथवा क्षयोपशम होनेसे श्रद्धान तो पापकर्मसे दूर रहना चाहिए ऐसा होताहै. और आगें आज धर्मोपदेशका निमित्त बना रहा तो धीरे धीरे कषायोंकी मंदता होजानेसे अन्याय और अभक्ष्य भी छूट सकते हैं. जहांपर मनुष्य अन्याय और अभक्ष्यको डरने लगा तो उससे कुरीतियां छूटनेही लगी ऐसा समझना चाहिये. सप्त व्यसनोंका त्याग, पांच अणुव्रतोंका ग्रहण, मद्य, मांस, मधु इनका त्याग, तीन गुणवत और चार शिक्षाव्रतोंका पालन इस पद्धतीसे उपदेशक्रम यदि सासता चलता रहे तो सभी कुरीतियां मिट सकती है ऐसा मैं समझता हूं. बालक, तरूण, वृद्ध ऐसे सभी अवस्थाके पुरुषों में और स्त्रियोमें श्रावक धर्म, उपासकाध्ययनका पाठं और श्रावकपतिक्रमणका पाठ हररोज जारी रखना चाहिये. जो कुछ कुरीतियां जैनियोंमें प्रचलित हैं उनको जैन शास्त्रों में कहींपर भी सहायता नहीं दी गई है। किंतु जगह जगह उनका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034888
Book TitleJaina Gazette 1914
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ L Jaini, Ajitprasad
PublisherJaina Gazettee Office
Publication Year1914
Total Pages332
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy