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________________ ( ३ ) . भाकी स्थापना हुई है, और हरसाल अधिवेशन होताहै. देखिये, इन त्रुटियोंके विषयमें श्रीमान दानवीर शेठ हुकुमचंदजी साहिबने बंबई प्रांतिक सभाके श्रीतीर्थक्षेत्र पालिताणाके गत माघ मासके अधिवेशनमें सभापतित्वके नातेसे क्या कहा है ? " पूर्व समयमें जिस धर्मकी उन्नतिके लिये हमारे पूर्वजोंने अपना सर्वस्व अर्पण कर सारे संसारमें धर्मका डंका बजाया था, खेद ! और महाखेद !! है कि आज उसी धर्म और उन्हीं ऋषियोंके अनुयायी संतानके अन्दर धार्मिक विद्याका अभाव, सदाचारका अभाव, अनेकता, बाल्यविवाहादि धर्मके अधः पतन होनेके कारणोंकी वृद्धि हो रही है। प्राचीन और आधुनिक समयमें जमीन और आसमानकासा भेद हो गया है। जहां जैन धर्मके श्रद्धानी मनुष्य मात्र थे, वहां आज जैनकुलोत्पन्न भी जैन धर्म में शंकित हो रहे हैं । जहां श्रावकाचारयुक्त धर्मज्ञ श्रावक, श्राविकाओंके झुंड दृष्टि पडते थे, वहां आज श्रावकाचारके नाम तकको न जाननेवाले जीव दृष्टिगोचर हो रहे हैं। जहां पात्रदान, करुणादानकी प्रचुरता थी वहां आज बहुसंख्यक भाइयोंमें उसका नामतक नहीं सुना जाता। जहां धनंजय सेठ सरीखे जिनेन्द्रभक्त पुण्यात्मा सुशोभित थे वहांपर आज धर्ममर्मसे अज्ञ समाजका बहु भाग दिखाई देता है । पूर्वकालमें जहां तत्त्वचर्चा करनेवाली, आत्मीय शांति प्राप्त करनेवाली भव्यमंडलियोंकी गिनती नहीं की जाती थी, जहां धार्मिक उपदेश, आध्यात्मिक ग्रन्थोंके पाठी दृष्टिगत होते थे, वहां आज विकथाओंके पाठी दीख रहे हैं। जहां धार्मिकगण आपसमें एक दूसरे धर्मात्माओंके साथ कंठसे कंठ लगाकर मिलते थे और आत्मिक उन्नति, धर्मोन्नतिकी वार्ता कर आनन्दको प्राप्त होते थे, वहां आज कलहपिशाचिनी और आपसी ईर्षा द्वेष-बुद्धिने अपना डेरा जमा रक्खा है। जहां जैनालयोंके संस्थापक जिनेन्द्र-देवकी पूजा करनेवाले, परमभक्त अनेक बडे २ धनाढ्य और राज्यकर्ता पुरुष-रत्न थे; जो जिनेन्द्रदेवकी पूजा कर अपना सौभाग्योदय समझते थे वहां आज अनेक धर्मा www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.034888
Book TitleJaina Gazette 1914
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ L Jaini, Ajitprasad
PublisherJaina Gazettee Office
Publication Year1914
Total Pages332
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size21 MB
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