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________________ ( ४ ) यतनों (जैन मंदिरों ) की ऐसी शोचनीय दशा हो रही है कि उनके लिये वेतन देकर पूजा करनेवाले पुजारी रक्खे जाते हैं। जहां आचार विचार ऐसे शुद्ध होते थे कि साधारण श्रावकों के घरोंमें भी मुनियों को शुद्ध आहार प्राप्त होता था, वहां आज हमारे घरोंकी यह दशा हो रही है कि उनमें भक्ष्य अभक्ष्य, शुद्ध अशुद्धका प्रायः बिलकुल विवेक उठ गया; अतएव यदि एक मामूली त्यागी भी कोई आजाता है तो उसका सुभीता कठिन दिखता है । हम लोगोंको बाजारकी बनी हुई अभक्ष्य चीजों के लेने खाने में भी कुछ संकोच नहीं रहा, जूता पहिने चलते २ खाना बडा स्वाद देनेवाला समझा जाता है, यह समयकी खूबी है । अब आप अपने उन भ्राताओं की तरफ भी दृष्टि डालिये, जो छोटे २ गांवो में निवास कर रहे हैं। उनपर दयाबुद्धि धारण कीजिये कि जो आपके भोले भ्राता बिना सच्चे धर्मोपदेशके, बिना सद् विद्या के, अज्ञानतावश अपने कर्तव्य से च्युत होते हुए मिथ्यात्व कूपमें पडकर आत्महितका घात कर रहे हैं । यहां तक कि मिथ्योपदेशियोंके कुसंगसे निज धर्म्म छोडकर अन्य धर्मकी शरण ले लेते हैं. यही कारण है कि प्रतिवर्ष आपकी यह जाति घटती जा रही है । भाइयो, अब अपनी गफलतकी नींदको छोड अपनी सच्ची वत्स - लता या प्रेमोका पूरा परिचय दीजिये और उपर्युक्त अवनतिके कारणोंके दूर करने के लिये और इन अपने सहोदर भोले भ्राताओं के उद्धार के लिये हार्दिक प्रीतिके साथ प्रयत्नशील होकर उपायोंको अमलमें लाइये, तभी धर्मोत्साह भी प्रगट होगा । " सज्जनवृंद, इस मूजब अपने मालवा प्रांतके अग्रणी शेट हुकुमचंदजी साहिब पुकार रहे हैं. यह पुकार समस्त भारत वर्षके जैनियोंके लिये है, क्योंकि भारत वर्षीय दिगंबर जैन महासभा, बंबई प्रांतिक सभा, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034888
Book TitleJaina Gazette 1914
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ L Jaini, Ajitprasad
PublisherJaina Gazettee Office
Publication Year1914
Total Pages332
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size21 MB
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