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बनारस, भारा, कलकत्ता, रंगून, मांडले तक; और पश्चिम में बंबई, सूरत, अमदाबाद, काठियावाड, कच्छतक. ऐसे इस भारतवर्षके चौतरफ फैली हुई जैनियोंकी वस्ती देखने में आती है. जैसा जंबूद्वीप के मध्यभागमें विदेह क्षेत्र शोभता है वेसाही यह मालवाप्रांत सबके मध्यभागमें सुशोभित है. मालवा प्रांत धनधान्यादि ऐश्वर्योंसे जैसा संपन्न है वैसा हीं धर्म कार्यों में दत्तचित्त ऐसे उदार पुरुषों से भी भरा हुवा है. तीस वर्ष पहले मैं इंदोर आया था ऊस समय भाई साहिब बेनीचंदजी, श्रीमान फत्तेचंद कुसलावाले नाथुरामजी, चुनीलालजी, हीरालालजी, चंपालालजी इत्यादि धर्मात्मा महाशयोंसें यह नगरी ही क्या परंतु संपूर्ण मालवाप्रांत प्रकाशमान हो रहा था. जैसे लक्ष्मीवान और उदार चित्तबाले धर्मात्माओ यह प्रांत चमक रहाथा, वैसे ही जैन सिद्धांतके ज्ञाता विद्वान शिरोमणि पंडित भागचंदजी, पंडित झरगदलालजी और न्याय दिवाकर पंडित पन्नालालजी इत्यादि बडे बडे दिग्गस शास्त्रविशारद पुरुषभी इस मालवा प्रांत में दौरा करते मिथ्यात्व अधकारको दूर करने में मानो सूर्य समान प्रकाशित थे. तबसे आजतक यह मालवाप्रांत धनाढ्य, उदार और विद्वान पुरुषोंसे दिनदिन उन्नत्तिपर बढताही देखने में आता है. इसी कारण मैंने इसको जंबूद्वीपमेंके विदेह क्षेत्रकी उपमा दी है.
सज्जन महाशय, यद्यपि विदेहक्षेत्र भरत ऐरावत क्षेत्रोंकी अपेक्षा से बहुत कल्याणकारी है, तो भी वह क्षेत्र इन क्षेत्रों के समान कर्मभूमि ही है. वहां पर भी शुभाशुभ आस्रव बंध होते रहते हैं; इसलिये संवर निर्जराके उपायोंद्वारा उन कर्मोंको दूर करके जैसे मोक्ष प्राप्त करना पडता है, वैसे ही यह मालवा प्रांत धनाढ्य, उदार और विद्वान धर्मात्माओंसे अन्य प्रांतोंकी अपेक्षा बहुत ही बढकर है, तो भी इसमें भी उन्नतीकी पूर्णता होचुकी ऐसा नहिं समझना चाहिये. यहांपर भी और प्रांतोंके समान कई त्रुटियां विद्यमान हैं. जिनको कि किन किन उपायों से दूर किया जाय इस अभिप्रायसे ही इस मालवाप्रांतिक स
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