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मोक्षमार्गस्य नेतारं भत्तारं कर्मभूभृताम् ।
ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वन्दे तद्गुणलब्धये ॥१॥
मोक्षमार्गको प्रवर्तानेवाले, कर्मबंधरूपी पर्वतोंको छेदनेवाले, संपूर्ण तत्वोंको जाननेवाले ऐसे सर्वज्ञ भगवानको इन गुणोंकी प्राप्तीके लिये मैं नमस्कार करता हूं.
प्रिय सज्जन प्रतिनिधिगण, धर्मबंधु और धर्मभगिनिओं, आज अत्यंत हर्षका समय है जो इस मालवा प्रांतिक सभाके नैमित्तिक अधिवेशनमें आप अपनी उन्नति करनेकी उत्कट इच्छासे इस स्थानपर एकत्रित हुएहैं. ऐसी महती सभाका सभापतित्व आपने मुझको प्रदान किया जिससे मैं आपकां बढा आभारी हूं और मैं अपने अंतःकरणसे कहता हूं कि ऐसे भारी काम शिरपर लेनेकी मेरी ताकत नहीं हैं; सबब कि, न तो मैं विद्वान हूं और न धनवान हूं. मैंतो केवल अपने धर्मबंधुओंका सेवाधारक हूं. इसी विचारसे जो कुछ आप महाशयोंकी आज्ञा हुई उसका उल्लंघन न करके शिरसा मान्य करना यह मैं अपना कर्तव्य समझता हूं.
__ भ्रातृगण, इस भारत वर्षमें जैनियोंकी संख्या यद्यपि औरोंके मुकाबलेमें बहुत ही थोडी है, लेकिन तमाम भारतवर्षके सभी प्रांतोमें फैल रहीहै. उत्तरमें जैपूर, आगरा, दिल्ली, काश्मीर रावलपिंडी देरागाजीखान तक; दक्षिणमें मैसूर, कांची, तंजावर मद्रास तक; पूर्वमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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