________________ (65) कृत्रिम हैं द्वयअर्द्ध दीप माही बन्दो जिम // पाठकोडि परि छप्पन लाख जु सहस सत्याएँ / चार शतक परि असी एक जिन भन्दिर जाएं / व्यंतर ज्योतिषमाहि संख्य रहते जिन मंदिर / ते सब वंदन करूं हरहु मम पाप संघकर // सामायिक सम नाहि भार कोउ बर मिटायक। सामायिक सम नाहिं और कोउ मैत्री दायक / श्रावक अणुव्रत आदि अत सप्तम गुण थानक / यह आवश्यक किये होय निश्चय दुख हानक / / जे भवि भातम काज करण उद्यम के धारी। ते सब काज विहाय करो सामायिक सारी // राग दोष मद मोह क्रोध लोभादिक जे सब / बुध 'महाचन्द्र' विलाय जाय ताते कीजो अब / / aaz Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com