________________ सप्त हस्त तनु तुंग मंग कृत जन्म मरण भय / बाल ब्रह्ममय ज्ञेय हेय आदेय ज्ञानमय / / दे उपदेश उधारि तारि भवसिंधु जीव धन / आप वसे शिव मांहि ताहि बंदा मन वच तन / / जा के वंदन थकी दोष दुख दूर हि जावे : जाके वंदन थकी मुक्ति तिय सन्मुख आबै // जाके वंदनथकी वंद्य होवे सुरगन के। ऐसे वीर जिनेश बन्दि हूं क्रमयुग तिनके // सामायिक षटकर्म माहिं वंदन यह पंचम / वन्दों वीर जिनेन्द्र इन्द्रशत वंद्य नंद्य मम / / जन्म मरण भय हरो करो अघ शांति शांतिमय / मैं अघकोश सुपोष दोष को दोष विनाशय / / छठा कायोत्सर्ग कर्म / / कायोत्सर्गविधान करूं अंतिम सुखदाई / कायत्यजनमय होय काय सबको दुखदाई // पूरब दक्षिण नमूं दिशा पश्चिम उत्तरमैं / जिनगृह वंदन करूं हरूं भव पापतिमिर मैं // शिरोनति मैं करूं नमू मस्तक कर धरिकै / आवर्चादिक क्रिया करूं मनवच मद हरिकै / तीन लोक जिनभवनमाहिं जिन हैं जु अकृत्रिम / Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com