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________________ (५९) मृतक शरीर पर से ही मरहठे अजमेर में पा सके! आत्मवीर धनराज के इस वलिदान ने उनका नाम भारतीय इतिहास में अमर कर दिया। ( ३२) जयपुर राज्य के जैन योद्धा । जयपुर राजवंश से जैन धर्म का क्या सम्पर्क रहा है, यह तो प्रामाणिक रूप में नहीं कहा जा सकता, परन्तु इतना स्पष्ट है कि इस राज्य के कईएक मन्त्री और सेनापति जैन'धर्मानुयायी वीर-नर-रत्न थे। इनमें से हम केवल दीवान अमरचन्द्र जी का नामोल्लेख करना उचित समझते हैं। यह अपनी आत्म-दृढ़ता और वीरता के लिए प्रसिद्ध थे। कविवर वृन्दावन जी ने इनके विषय में लिखा था परम बुधीधर धीरता, धोरी धन धनमान । राजमान गुनखान वर, अमरचन्द दीवान ।। (३३) कोट काङ्गड़ा के जैन दीवान । पन्द्रहवीं शताब्दि तक कोट कागड़ा (नगरकोट पजाब) एक जैनतीर्थ के नाम से प्रसिद्ध था। उसका दीवान दिगम्बर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034885
Book TitleJain Viro ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherKamtaprasad Jain
Publication Year1930
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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