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________________ (४६) (२३) कच्छप वीर विक्रमसिंह । राजा भोज के सामन्त कच्छपवंश ( कछवाहा ) के राजा अभिमन्यु चडोभनगर में राज्य करते थे । इनका नाती विक्रमसिंह था। उसने दूबकुण्ड के जैसमन्दिर को दान दिया था। इससे प्रगट है कि वोर कछवाहों के निकट भी जैनधर्म अादर पा चुका है। (२४) वीर राजा ईल। दशवीं शताब्दि के लगभग बद्रोड़प्रान्त में ईल नामक राजा प्रसिद्ध होगया है। यह राजा जैनधर्मानुयायी था। ईलिचपुर नामक नगर इसी ने बसाया था। किन्तु मुसलमानों से अपने देश की रक्षा करता हुश्रा, यह वीरगति को प्राप्त हुआ था। (२५) भंजवंश के जैन राजा सन् १२०० ई० के ताम्रपत्रों से प्रगट है कि मयुरभञ्ज (बङ्गाल) के भंजवंश के राजाओं ने जैनमन्दिरों को बहुत से गाँव भेंट किये थे। इस वंश के संस्थापक वीरभद्र थे, जो एक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034885
Book TitleJain Viro ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherKamtaprasad Jain
Publication Year1930
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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