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( ४४ ) उसने राजाज्ञा से बन्द कर दिया था। अपने पड़ोसी निर्बल राजाओं की उसने रक्षा की थी और धर्म एवं साहित्य की वृद्धि में सम्पूर्ण सुविधा उपस्थित को थी। दूसरे राजाओं के पास दूत भेज कर अहिंसाधर्म का प्रचार किया था । औषधालय, अनाथालय, और पिंजरापोल आदि स्थापित कराकर उसने प्राणीमात्र को अभयदान दिया था। उसकी यह सफलता जैनधर्म की पूर्व प्रभावना थी। ___ सन् १९७४ में कुमारपाल स्वर्गवासी हुये और उनके उत्तराधिकारी पारस्परिक कलह के कारण सोलङ्की-साम्राज्य को सुरक्षित न रख सके*।
(१६) बघेले राज्य के जैन-वीर। सोलङ्कीकुल की एक शाखा 'बाघेल' थी। सन् १२१६ से १३०४ तक गुजरात पर राज्य किया। इस वंश का पहला राजा अर्णकुमारपाल की माता की बहन का पुत्र था । “लवणप्रसाद", 'वीरधवल,' "विशालदेव", "अर्जुनदेत", "सारङ्गदेव"
और "कर्णदेव" इस वंश के राजा थे और इनको जैनधर्म से सहानुभूति थो।
*इस वंश के राजाओं का विशेष वर्णन "जैनवीरों का इतिहास और हरा पतन" नामक पुस्तक में है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com