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________________ ( ४६ ) वस्तुपाल निर्भीक और निशङ्क एक थे । स्वयं राजा के चाचा को सज़ा देने में वह चूके न थे। बात यह थी कि राजा के चाचा सिंह ने एक जैनाचार्य का अपमान किया था । वस्तुपाल इस धर्म विद्रोह को सहन न कर सके। उन्होंने सिंह की उंगली कटवा दी। राजा उनके इस दुस्साहस पर खूब बिगड़ा परन्तु उसने इन्हें क्षमा कर दिया ! बताइये, धर्म के लिये यह कितना महान बलिदान था ! किन्तु श्राज जैनियों में कोई उनका एक पासंग भी दीखता है ! नहीं; बस, यह भीरुता ही तो हमारे पतन का मुख्य कारण है । आओ, मेटो इस भीरुता को और फिर समाज में अनेक वस्तुपाल दिखाई पड़ें, यह प्रयत्न करो ! ( २० ) वीर सुहृद्ध्वज । मुसलमानों की सेना ने भारत में हाहाकार मचा दिया था । आगरा और श्रवध को वह फतह कर चुके थे । यह ११ वीं शताब्दी की घटना है। किन्तु मुसलमानों को अब आगे बढ़ जाना मुहाल हो गया था । इसकी एक वजह थी और वह वीर सुहृद्ध्वज के व्यक्तित्व में छिपी हुई है । श्रावस्ती (सहेठ महेठ) में एक पुराने ज़माने से एक जैनधर्मानुयायी राजवंश राज्य करता श्रा रहा था ! सुहृद्ध्वज उसीवंश के अन्तिम राजा थे । जब उन्होंने सुना कि मुसलमान हिन्दुओं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034885
Book TitleJain Viro ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherKamtaprasad Jain
Publication Year1930
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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