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________________ का बीड़ा उठाया था। इससे सहज अनुमान हो सकता है, कि इन क्षत्रिय सम्राट की धाक और प्रभाव जनसाधारण पर कैसा जमा हुआ था। अब ज़रा सोचिये कि जब जैनधर्म के प्रतिपादक स्वयं तीर्थङ्कर भगवान ही तलवार लेकर रण-क्षेत्र में वीरता दिखा चुके हैं, तब यह कैसे कहा जाय कि जैनधर्म में कर्मवीरता को कोई स्थान ही प्राप्त नहीं है ? - तीर्थङ्कर अरिष्टनेमि । भारत की पुरातन इतिवृत्ति में महाभारत संग्राम को वही स्थान प्राप्त है, जो इस ज़माने के इतिहास में पिछले योरुपीय महायुद्ध को मिला हुआ है। अच्छा, तो उस महायुद्ध में भी अनेक जैन महापुरुषों ने भाग लिया था । औरों की बात जाने दीजिये । केवल श्रीकृष्ण जी के सम्पर्क भ्राता और जैनों के बाईसवें तीर्थङ्कर अरिष्टनेमि को ले लीजिये। जिस समय यादवों को जरासिन्धु से घोर संग्राम करना पड़ा तो उस समय भगवान अरिष्टनेमि ने बड़ी वीरता दिखाई । स्वयं इन्द्र ने अपना रथ और सारथि उनके लिए भेजा। उसी पर चढ़ कर भगवान अरिष्टनेमि ने घोर युद्ध किया और फिर ढलती उम्र के निकट पहुँचते-पहुँचते वह कर्म-रिपुत्रों से लड़ने के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034885
Book TitleJain Viro ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherKamtaprasad Jain
Publication Year1930
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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