SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६ ) के प्रभावक चरित्र-रेखाओं से अपने जीवन-पथ को चिह्नित कर लीजिये और फिर निशङ्क हो कर जैन-जीवन-वीर-जीवन का प्रकाश दुनियां में फैल जाने दीजिये। इसका परिणाम यह होगा कि हम और आप कवि के राग में लय मिला कर आकाश गुंजाते मिलेंगे कि'यह थे वह वीर जिनका नाम सुन कर जोश आता है। रगों में जिनके अफसाने से चक्कर खून खाता है ।' 'इसी कौम में ही चौबीस तीर्थकर . हुये पैदा, जहां में आज तक बजता है जिनके नाम का डंका । समझते थे अपना धर्म हर एक जीव की रक्षा, निछावर थे दया पर, बल्कि वह सौ जान से शैदा ॥' 'है अब तक धाक इन बाँके दिलेरों के शुजाअत की, लगी है सुफए तारीख पर मोहर शहादत की ।' वीराग्रणी श्री ऋषभदेव । 'नाभेः सुताः सः वृषभो मरुदेवीसूनुयों वै चचार मुनियोग्यचर्याम् ।' ___.. -भागवतपुराणे। सभ्यता का अरुणोदय था। उस समय लोगों को रहनसहन और करने-धरने का इतना भो शान नहीं था, जितना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034885
Book TitleJain Viro ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherKamtaprasad Jain
Publication Year1930
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy