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( ८६ ) लिया तो कौन वीर बनने-अमर नाम करने को न मचल उठेगा । अब भला, कहिये, इन वीरों की प्रशंसा जड़ लेखनी तो क्या पार्थिक मुख से करने में कैसे सफलता मिले ? इसलिये
आइये पाठक, इन वीरवरी को प्रणाम करके निम्न शब्दों में एक 'सच्चे वीर' के स्वरूप की माला मनमें फेरने की प्रतिज्ञा ले लीजिये:
'वीर वह है जिसके हृदय में दया हो, धर्म हो । पापियों से सख्त, निर्दोषों के हक में नर्म हो । कष्ट हो, दुःख हो, न वह लेकिन भलाई से फिरे । ज़ख्म खाकर भी न मुँह उसका लड़ाई से फिरे ।।'
जय!
चन्देवीरम् !!
जय !!!
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