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________________ ( ८४ ) किन्तु शायद आप कहें-हमारे जैनी भाई कहें, यह क्षत्री वीरों की बातें हमें क्यों सुनाते हो ! हमारा काम तो रुपया कमाना और उससे धर्म का नाम करना है ! किन्तु वह भूलते हैं। जैनाचार्यों ने निशङ्क होने का उपदेश जैनी मात्र को दिया है और हमारे पहले के वैश्य-पूर्वज उसकी जीती-जागते मिसाल थे ! वणिक कुल दिवाकर भविष्यदा और जम्बूकुमार के चरित्र को क्या आप भूल गये ? और फिर वीर भामाशाह, आशाशाह, धनराज और धर्मचन्द्र क्या वैश्य नहीं थे ? उनके चरित्र पढ़िये और देखिये वह आपको क्या शिक्षा देते हैं ? धन खाने खरचने की वस्तु है-उससे धर्म का काम सधना सुगम नहीं है। धर्म तो प्रात्मबल 11: होने और उसका प्रभाव दिगन्तव्यापी बनाने में ही गर्भित है और यह तब ही संभव है, जब सत्य की निशङ्कभाव से आराधना की जाय । अतएव इन : वीरों के चरित्र से अपने आत्म गौरवाञ्चित होने देना प्रत्येक जैन का कर्तव्य है। ____ साथ ही हमारे अजैन पाठक भी इन वीरों की आत्मकथाओं से लाभ उठाने में पीछे न रहें। वह देखें भारत के रक्षक, भारत के नाम को दुनियां में चमकाने वाले और भारत पर अपना सब कुछ कुरबान करने वाले कितने श्रादर्श जैन वीर और वीरांगनायें हो चुकी हैं । जैन धर्म ने उन्हें कायर नहीं बनाया उनके श्रात्मबल को निस्तेज नहीं कर दिया, फिर आज यह कोई कैसे मानले कि जैन धर्म ने ही भारत को नामर्द Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034885
Book TitleJain Viro ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherKamtaprasad Jain
Publication Year1930
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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