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( ५४ ) कच्ची सड़क हैं । कुल छै मील की चढ़ाई है । पहले गौतमस्वामी की टोंककी वंदना करके बांये हाथ की तरफ वंदना करने जावे। दसवीं श्री चन्द्रप्रभुजीकी टोंक बहुत ऊंची है। श्रीअभिनन्दननाथ जी की टोंकसे उतरकर तलहटी में जलमंदिर में जाते हैं और फिर गौतमस्वामी की टोंक पर पहुँच कर पश्चिम दिशा की ओर वंदना करना चाहिये । अन्त में भ० पार्श्वनाथ की स्वर्णभद्र-टोंक पर पहुँच जावे । यह टोंक सबसे ऊंची है और यहांका प्राकृतिक दृश्य बड़ा ही सुहावना है। वहां पहुँचते ही यात्री अपनी थकावट भूल जाता है और जिनेन्द्र पार्थ की मनोहर प्रतिमा के दर्शन करते ही आत्माल्हाद में निमग्न होजाता है । यहाँ विश्राम करके दर्शनपूजन और सामायिक करके लौटना चाहिये। रास्ते में बीसपंथी कोठीकी ओर से जलपानका प्रबन्ध है । पर्वत समुद्रतटसे ४४८० फीट ऊंचा है। इस पर्वतराज का प्रभाव अचिंत्य है -कुछ भी थकावट नहीं मालम होती है । नीचे मधुवन में लौटकर वहाँ के मंदिरों के दर्शन करके भोजनादि करना चाहिये । मनुष्य जन्म पाने की सार्थकता तीर्थयात्रा करने में है और सम्मेदाचल की वंदना करके मनुष्य कृतार्थ होजाता है। यहाँकी यात्रा करके वापस ईश्वरी (पारसनाथ) स्टेशन आवे और हावड़ा का टिकिट लेकर कलकत्ता पहुँचे ।
कलकत्ता
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