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उन्हें उन देशों का ज्ञान नक़शे के द्वारा कराया जाता है जिनको उन्हों ने देखा नहीं है। उस अतदाकार स्थान अर्थात् नकशे के द्वारावह उन विदेशों का ठीक ज्ञान उपार्जन करते हैं। ठीक इसी तरह जिनेन्द्र की प्रतिमा भी उनका परिज्ञान कराने में कारणभूत हैं। जिन्होंने म० गाँधी को नहीं देखा है वह उन के चित्र अथवा मूर्ति के दर्शन करके ही उनका परिचय पाते और श्रद्धालु होते हैं । इसीलिये जिनमन्दिरों में जिनप्रतिमायें होती हैं. उन के आधार से एक गृहस्थ ज्ञानमार्ग में आगे बढ़ता है। तीर्थस्थानों पर भी इसीलिये अति मनोज्ञ और दर्शनीय मूर्तियों का निर्माण किया गया है।
पहले तो तीर्थस्थान स्वयं पवित्र है। उसपर वहाँ आत्मसंस्कारों को जागृत करने वाली बोलती- सी जिनप्रतिमायें होती हैं जिनके दर्शन से तीर्थयात्री को महती निराकुलता का अनुभव होता है१ । वह साक्षात् सुख का अनुभव करता है ! अब पाठक समझ सकते हैं कि तीर्थ क्या है ?
१-'सपरा जंगम देहा दंसणणाणेण सुद्धचरणाणं । णिग्गंथवीयराया जिणमग्गे एरिसा पडिमा ।'
___-श्री कुन्दकुन्दाचार्य। भावार्थ-स्वात्मा से भिन्नदेह जो दर्शन ज्ञान व निर्मल चारित्र
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