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श्री देवगढ़ अतिशय क्षेत्र जी० आई० पी० लाईन पर जाखलौन स्टेशन से आठ मील दूर देवगढ़ अतिशयक्षेत्र है । ग्राम में नदी किनारे धर्मशाला है। वहां से पहाड़ एक मील है । पहाड़ के पास एक बावली है, इसमें सामग्री धो लेना चाहिये । पहाड़ पर एक विशाल कोट के अन्दर अनेक मंदिर और मूर्तियां दृष्टि पड़ते हैं । पैंतालीस मन्दिर प्राचीन लाखों रुपयों की लागत के गिने गये हैं । कहते हैं कि इन मदिरों को श्री पाराशाह और उनके दो भाई देवपत और खेवपत ने बनवाया था, परन्तु कुछ मंदिर उनके समय से प्राचीन हैं। श्रीशान्तिनाथजी की विशालकाय प्रतिमा दर्शनीय है। यह स्थान उत्तरभारत की जैनबद्री समझना चाहिये । यहाँ के मंदिर मूर्तियां-स्तंभ और शिलापट अपूर्व शिल्पकला के नमूने हैं । एक "सिद्धगुफा'नामक गुफा प्राचीन है। यहांके मन्दिरोंका जीर्णोद्धार होने की बड़ी आवश्यकता है। आगरे के सेठ पदमराज वैनाडा ने बिखरी हुई मूर्तियों को एक दीवार में लगवा कर परिकोट बनवाया था। सन् १९३६ में यहां खुरई के सेठ गणपतलाल गुरहा ने गजरथ चलाया था। वापस जाखलौन होकर ललितपुर जावे ।
ललितपुर यहाँ क्षेत्रपाल की जैनधर्मशाला में ठहरे । यहाँ एक कोट के अन्दर पाँच मन्दिर बड़े ही रमणीक बने हुये हैं । पाठशाला भी
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