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बीजोल्या-पार्श्वनाथ बीजोल्या ग्राम के समीप ही आग्नेय दिशा में श्रीमत्पार्श्वनाथ स्वामी का अतिशयक्षेत्र प्राचीन और रमणीय है सैकड़ों स्वाभाविक चट्टानें बनी हुई हैं। उनमें से दो चट्टानों पर शिलालेख
और 'उन्नतशिखिरपुराण' नामक ग्रंथ अंकित है। यहां श्री पार्श्वनाथजी के पाँच दि० जैन मंदिर हैं । इन मंदिरों को अजमेर के चौहानराजा पृथ्वीराज द्वि० और सोमेश्वर ने ग्राम भेंट किये थे। इनको सन् १९७० ई० में लोलाक नामक श्रावक ने बनवाया था । मालूम होता है कि यहां पर उस समय दि० जैन भट्टारकों की गद्दी थी । पद्मनंदि-शुभचंद्र आदि भट्टारकों की यहां मूर्तियां भी बनी हुई हैं । इसका प्राचीन नाम विन्ध्याचली था। यहां के कुडों में स्नान करने के लिये दूर-दूर से यात्री आते थे। शहर में दि० जैनियों की बस्ती और एक दि० जैन मन्दिर है।
चित्तौड़गढ़ सन् ७३८ ई० में वप्पारावल ने चित्तौड़ राज्य की नींव डाली थी। यहाँका पुराना किला मशहूर है, जिसमें छोटे-बड़े ३५ तालाब और सात फाटक हैं । दर्शनीय वस्तुओं में कीर्तिस्तंभ, जयस्तंभ, राणा कुम्भा का महल आदि स्थान हैं । कीर्तिस्तंभ ८० फीट ऊंचा है इसको दि० जैन बघेरवाल महाजन जीजाने १२ वीं-१३ वीं शताब्दि में प्रथम तीर्थकर श्री आदिनाथजी की प्रतिष्ठा में बनवाया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com